19 दिसंबर, 2019... यह तारीख हमेशा याद की जाएगी। इस दिन तहजीब के शहर लखनऊ में CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी थी। शाम होते-होते प्रदेश के कई शहरों से हिंसा और आगजनी की खबरें आना शुरू हो गईं। 21 दिसंबर तक हिंसा ने UP के 22 जिलों को अपनी चपेट में ले लिया था। 10 जिलों में 20 युवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ। हिंसा में 288 पुलिसकर्मी भी घायल हुए।
हिंसा के बाद जो असर हुआ, वह भी लोगों के जेहन में ताजा है। UP में कई हफ्ते तक जुमे (शुक्रवार) की नमाज संगीनों के साए में पढ़ी गई। अब सब कुछ शांत है, लेकिन मारे गए युवकों के परिजन के दिलों में लगी आग ठंडी नहीं हो पा रही है। जिंदगी ठहरती नहीं, इसलिए लोग आगे बढ़ चले हैं। लेकिन, इंसाफ की आस लगाए पीड़ितों से उनकी मंजिल काफी दूर है। दर्द ऐसा है कि कोई आज भी अपने बेटे की कब्र पर रोज जाता है तो किसी ने बेटे की कॉपी-किताबों को अभी भी जगह से नहीं हटाया है। इस हिंसा में कई परिवार उजड़ गए हैं। दैनिक भास्कर ने लखनऊ, बिजनौर, संभल और फिरोजाबाद के 5 पीड़ित परिवारों से बात की। एक रिपोर्ट...
संभल: कब्र पर रोज फूल चढ़ाते हैं पिता, मां चारपाई पर
दिल्ली गेट मोहल्ले में किसी से भी पूछें कि शहरोज का घर कौन सा है? तो छोटा-सा बच्चा भी आसानी से पता बता देता है। आखिर उस परिवार ने इतना कुछ झेला है। शहरोज के पिता यामीन रोज की तरह हाथों में फूल लिए बेटे की कब्र पर जाने की तैयारी कर रहे थे। घर में एक बिस्तर पर मृतक की मां लेटी हुई है। मां का हाल अभी भी बुरा है। भली-चंगी शहरोज की मां उसकी मौत के बाद चारपाई पर आ गयी हैं। न किसी से बोलना न बात से मतलब रखना। अब तो वह सिर्फ दवाइयों के भरोसे जिंदा हैं।
पेशे से पल्लेदार 56 वर्षीय यामीन कहते हैं- मैं अपने बेटे की कब्र पर रोज फूल चढ़ाने जाता हूं। यह कहते हुए उनकी आंखें गीली हो गईं। शहरोज 22 साल का था। ट्रक ड्राइवर था। 19 दिसंबर 2020 को वह मुंबई से लौट कर आया था। दूसरे दिन उसे फिर मुंबई लौटना था। 20 दिसंबर को जुमा था। दोपहर में वह नमाज पढ़कर लौटा, तो मां से खाना मांगा। मां ने कहा- बगल में शादी है। आज वहां परिवार की दावत है। जाकर वहीं खा ले। शहरोज खाना खाकर लौटा, तो मां से कहा- मैं जा रहा हूं और घर से निकल गया। लेकिन वह गाड़ी तक भी नहीं पहुंचा था कि उसे गोली मार दी गई। साल भर बीत गया, लेकिन उसकी बातें, उसका चेहरा सोचकर हमारा जीना हराम है। मैं चाह कर भी उसे इंसाफ नहीं दिला पा रहा हूं।
मुकदमा दर्ज हुआ या नहीं, इस सवाल पर यामीन कहते हैं कि उस समय हम लोगों को कोई होश नहीं था। उसके मामा को हमने तहरीर लिख कर दी, लेकिन जब वह थाना पहुंचे तो पुलिस ने तहरीर ही बदलवा दी। मुकदमा अज्ञात में दर्ज हो गया। जब भी थाने जाकर पूछो कि कोई पकड़ में आया, तो कहते हैं कि गवाह लेकर आओ।
लखनऊ: पैसा मिलते ही बहू छोड़ कर चली गई, अब टूटा पैर लेकर मजदूरी करता हूं
सज्जादबाग निवासी वकील 19 दिसंबर की शाम घर का सामान लाने के लिए हुसैनाबाद गया था। अचानक एक गोली सीने में आकर धंस गयी और वकील वहीं गिर गया। घर पर फिर उसकी लाश पहुंची। साल भर पहले ही उसकी शादी हुई थी। दुल्हन लाश देखते ही बेसुध हो गई, जबकि मां भी होश खो बैठी। वह केवल अपने बेटे को वापस बुला रही थी। सबकुछ याद कर वकील के पिता शफीकुर्रहमान आज भी सिहर उठते हैं। वे बताते हैं कि उस घटना के बाद मेरा घर बिखर गया। जिस बहू को हमने बड़े दुलार से रखा था, वह बेटे की मौत के तीसरे दिन अपने घर चली गई। दुख इस बात का है कि उसने हमसे कोई रिश्ता नहीं रखा। उसने सोचा तक नहीं कि बेटे-बहू के बिना बुजुर्ग मां-बाप कैसे रह रहे होंगे?
शफीकुर्रहमान कहते हैं- मेरा पैर टूटा है लेकिन घर चलाने के लिए मैं लेबर का काम करता हूं। बेटे वकील की तरह अब उसका छोटा भाई तौफीक ई-रिक्शा चलाता है। अखिलेश यादव ने 5 लाख की सहायता दी थी। जो आधे बहू को और आधे हमें दिए थे। हमने बहू से कहा था कि सब पैसे तुम रख लो, लेकिन घर छोड़ कर मत जाओ। लेकिन, वह नहीं मानी और चली गई। अल्लाह उसे खुश रखे। अब बेटा नहीं रहा, तो बहु से क्या आस लगाएं?
बेटे को कब इंसाफ मिलेगा, इस सवाल पर वे कहते हैं कि हमारा मुकदमा अज्ञात में दर्ज किया गया था। एक वकील साहब हमारी मदद किया करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनका फोन भी नहीं लग रहा है। अब कोर्ट कचहरी के चक्कर काटें या फिर घर का खर्च चलाने के लिए काम करें?
शफीकुर्रहमान कहते हैं कि वकील की मां अब बिस्तर पर आ गयी हैं। चाह कर भी वह बेटे का गम नहीं भुला पाती हैं। इस दौरान जो पैसे हमें मिले, उससे हमने अपनी बेटी की शादी कर दी है। अब इंसाफ ऊपर वाले के हाथ में है।
बिजनौर: बेटा IAS की तैयारी कर रहा था, साल भर बाद भी उसकी किताबें संभाल कर रखीं
बिजनौर से करीब 10 किमी. दूर नहटौर में सुलेमान और अनस का घर है। इन दोनों ने भी 2019 में हुई हिंसा में अपनी जान गंवाई थी। सुलेमान के पिता जाहिद कहते हैं कि मेरा बेटा पढ़ने में तेज था। वह IAS बनना चाहता था। जिसकी तैयारी वह मामा के पास नोएडा में रहकर कर भी रहा था, लेकिन इस दंगे ने हमारे पूरे परिवार के सपनों को आग लगा दी।
दरअसल, सुलेमान के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिता और बड़े भाई खेती करते हैं, उसी से घर चलता है। इतने पैसे नहीं थे कि बच्चों को कोचिंग वगैरह करवा सके। हालात अब भी कुछ ऐसे ही हैं। मां की हालत ठीक नहीं रहती है, लेकिन इन सबके बीच पिता जाहिद बेटे की यादों को साल भर बाद भी संभाले हुए हैं। उन्होंने सुलेमान के पढ़ने वाले कमरे में रखी किताबों और कुर्सी मेज को इधर से उधर नहीं किया है। जैसा साल भर पहले था, वैसा ही अभी है।
सुलेमान के बड़े भाई शुऐब कहते हैं कि हमने 3 अज्ञात और 3 नामजद पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था। तब जिले के कप्तान ने भी पुलिस की गोली से सुलेमान की मौत की बात भी मानी थी, लेकिन न तो उन पुलिस वालों को सस्पेंड किया गया, न ही उन्हें गिरफ्तार किया। कोरोना की वजह से मामला कोर्ट में पहुंचने में भी देर हुई है। अभी तक कोर्ट में कोई सुनवाई ही शुरू नहीं हुई।
बिजनौर: आज भी याद आता है अनस का काला कोट पहने चेहरा, बहू ने तोड़ा रिश्ता
बिजनौर के नहटौर में ही अनस का भी घर है। अनस के पिता अरशद हुसैन कहते हैं कि साल भर में बेटे की मौत का गम तो नहीं भुला सका, लेकिन बहू जरूर हमें छोड़ कर चली गई। वह बताते हैं कि अनस ने लव मैरेज की थी। चूंकि हमारा घर छोटा है तो उपरी मंजिल बनने तक वह ससुराल में रह रहा था। चूंकि छत डलवाने का पैसा नहीं था तो तय हुआ कि टिन शेड डलवाकर रहा जाए। जब पैसे आएंगे, तो छत डलवा दी जाएगी। जुमा (20 दिसंबर 2019) को ही शिफ्ट होना था, लेकिन उसी दिन उसकी मौत हो गयी।
अनस दिल्ली में फ्रूट जूस की दुकान लगाया करता था। उस समय घर आया हुआ था। मुझे याद है कि उसने काला कोट पहन रखा था। वह घर से अपने चाचा के यहां दूध लेने निकला, लेकिन गली पार करते ही उसकी आंख में एक गोली आकर धंस गयी। चीख पुकार मच गई कि काले कोट वाले को गोली लग गई। मैंने जब सुना तो मैं भागा। वह जमीन पर बेसुध पड़ा था। मैं उससे लिपट गया। फिर मेरे भाई-भतीजे उसे लेकर अस्पताल निकल गए। मैं दूसरी गाड़ी से भागता, तब तक फोन आया कि अब आने की जरूरत नहीं है। उस दिन से उसकी मां सिर्फ दवा के ही भरोसे है। अनस के चाचा रिसालत हुसैन कहते हैं कि अनस के पिता अरशद रोज कमाने रोज खाने वाले हैं। हमने तीन पुलिस वालों के खिलाफ मुकदमा लिखवाया था, लेकिन आज तक क्या हुआ यह नहीं मालूम। न ही पुलिस हमें कोई जानकारी देती है।
अखिलेश यादव (सपा अध्यक्ष) से मदद मिली के सवाल पर अनस के पिता अरशद कहते है कि सारे पैसे अनस की बेवा (पत्नी) को मिले हैं। हम तो जैसे पहले थे, वैसे ही हैं। अब अनस की पत्नी भी हमारे पोते को लेकर चली गयी है। साल भर होने वाला है, लेकिन उसने हमारा हाल-चाल तक नहीं पूछा।
फिरोजाबाद: बेटे की मौत के बाद बीमार पड़ी मां, मददगार भी हुए गायब
CAA हिंसा में मारे गए मृतक नबी जान के पिता अयूब कहते हैं- मेरा बेटा चूड़ी कटाई का काम करता था। 20 दिसंबर को जब दोपहर में दंगा भड़का, तो उसे मैंने घर बुलाया। वह घर पहुंचने ही वाला था कि घर से 200 मीटर की दूरी पर उसे पीछे से गोली लगी और वह वहीं ढेर हो गया। तब से आज तक कोई दिन ऐसा नहीं रहा, जब उसकी मां रोती न हो। अब तो वह पैरों से चल भी नहीं पाती है।
अयूब कहते हैं कि बेटे की याद इतनी आती है कि अब काम भी मुझसे नहीं होता है। एक बेटा काम करता है, उसी से घर का खर्च चलता रहता है। अयूब बताते हैं कि मुझे कुछ नहीं पता है कि मेरे बेटे के केस का क्या हुआ? अभी कोर्ट में है, या नहीं है या कोई केस में पकड़ा गया या नहीं कुछ भी जानकारी नहीं है। नबी जान की मां रोते हुए कहती हैं कि हम अपने बेटे का रिश्ता ढूंढ़ रहे थे, लेकिन बहू घर में आने से पहले ही वह अल्लाह को प्यारा हो गया। अब तो बस उसकी याद रह गयी है।
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