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Dainik Bhaskar 7 बड़े राज्यों के किसान चाहकर भी दिल्ली नहीं जा पा रहे, कोरोना संकट के कारण ट्रांसपोर्टेशन की भी कमी

दिल्ली में चल रहे आंदोलन में देश के 7 बड़े राज्य के किसान भी शामिल होना चाहते हैं। लेकिन, वे जा नहीं पा रहे हैं। पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी उप्र को छोड़ दें तो बाकी राज्यों के किसानों की कम मौजूदगी को लेकर भास्कर ने पड़ताल की। इसमें पता चला कि सबसे बड़ी बाधा परिवहन व संसाधन का अभाव है। कोरोना के कारण ट्रेनें और वाहन कम चल रहे हैं। खेतों में खड़ी फसल की देखभाल भी इन्हें करनी है। किसान संगठनों में प्रभावी नेतृत्व की कमी भी है।

बात हो रही है यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड के किसानों की। उधर, गुजरात में तो राज्य सरकार पर किसानों को नजरबंद करने का आरोप है। गुजरात के छोटे-बड़े 15 किसान संगठनों ने एक संघर्ष समिति बना ली है। संगठन के महामंत्री विपिन पटेल का कहना है कि अगले कुछ दिनों में 10 हजार किसानों के साथ दिल्ली कूच की तैयारी की जा रही है।

राजस्थान : अभी रणनीति बनाएंगे

राजस्थान किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं, ‘दिल्ली में फिलहाल बातचीत चल रही है। हम उसके आधार पर आगे की रणनीति बनाएंगे।’ जबकि बिहार के प्रगतिशील किसान नेता गौतम कुमार का कहना है, ‘निजी मंडी के खुलने की स्थिति में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, तो मूल्य जरूर मिलेगा। सरकार को यह गारंटी जरूर देनी चाहिए कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमत पर खरीद करने वाले व्यापारियों को दंडित किया जाएगा।

राजस्थान के किसान शाहजहांपुर बॉर्डर पर 2 दिसंबर से बैठे हैं। करीब 50 संगठन आंदोलन में डटे हुए हैं। यहां 4 किमी तक टेंट लगे हैं। आंदोलन में संख्या कम होने की एक वजह शीतलहर है और दूसरी फसल। किसानों का कहना है कि इस समय फसलों में पानी की जरूरत है नहीं तो पाला मार सकता है। इसलिए आंदोलन के साथ फसल बचाने की चिंता भी है।

महाराष्ट्र: किसान चिंतित, जरूरत पड़ी तो बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचने को तैयार

किसान सभा के नेता अजित नवले का कहना है, ‘पंजाब-हरियाणा में गेहूं और अन्य फसल एमएसपी पर अधिक मात्रा में बेची जाती है। नए कृषि कानूनों से यह बंद होने का भय महाराष्ट्र के किसानों में भी है। अगर संयुक्त किसान मोर्चा बड़ा आंदोलन करेगा तो यहां के किसान भी बड़ी संख्या में जाने को तैयार हैं।’

बिहार: जाति और पार्टी के हिसाब से भी किसानों में समर्थन और विरोध के सुर

बिहार में मंडी सिस्टम नहीं है। प्रगतिशील किसान नेता गौतम कुमार कहते हैं यहां के किसान गोविंदभोग जैसे उम्दा किस्म के चावल के 1000-1200 रुपए का भाव पाने को तरस रहे हैं। किसान सभा के महासचिव राजाराम सिंह का कहना है कि यहां जाति और पार्टी के हिसाब से समर्थन और विरोध के सुर हैं। बिहार के किसान कहते हैं पंजाब में जिन किसानों के खेत में बिहार के मजदूर काम करते हैं, वहां उन्हें 1,800 रुपए एमएसपी मिलता है। वहीं बिहार के किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता।

गुजरात: किसानों के घर पुलिस का पहरा फिर भी 3 हजार किसान कल रवाना होंगे

राजकोट के किसान नेता चेतन गढ़िया का कहना है कि राज्य सरकार आंदोलनरत किसानों को समर्थन देने वालों को नजरबंद कर रही है। उनके घर पर 24 घंटे निगाह रखी जा रही है। सुरेंद्रनगर किसान मोर्चा के प्रमुख रामकुभाई करपडा का कहना है कि किसानों को नए कृषि कानूनों के बारे में जागरूक करेंगे। सौराष्ट्र के 3 हजार किसान 3 जनवरी को दिल्ली रवाना होंगे। गुजरात के सूरत जिला किसान संगठन प्रमुख परिमल पटेल का कहना है कि किसानों की मांगें जायज हैं। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि दक्षिण गुजरात में अनाज की खेती कम होती है।

यूपी: किसान संगठन बातचीत जारी रहने तक आंदोलन को समर्थन जारी रखेगा

यूपी में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत और भानू गुट) सहित पश्चिम क्षेत्र के कई संगठन सिंघु बॉर्डर व नेशनल हाईवे पर सक्रिय हो गए हैं। किसान मंच के प्रमुख अखंड प्रताप सिंह कहते है कि संगठन जातियों में बंटा हुआ है। पश्चिमी क्षेत्र को छोड़ दें तो अन्य क्षेत्रों के किसानाें के पास प्रभावशील नेतृत्व है ही नहीं।

छत्तीसगढ़: किसान धान बेचने में व्यस्त, महिलाओं का जत्था सहयोग कर रहा

छत्तीसगढ़ में किसान धान बेचने में व्यस्त हैं। इसके बाद भी 500 से ज्यादा किसान दिल्ली जाकर लौट आए हैं। किसान नेता डॉ. संकेत ठाकुर के मुताबिक दिल्ली गए किसानों के लिए दवाइयां व जरूरी सामान लेकर बुधवार को कुछ महिलाएं रवाना हुई हैं। जनवरी के पहले हफ्ते में एक हजार किसान दिल्ली जाएंगे।

झारखंड: 90% छाेटे किसान, भंडारण नहीं करते इसलिए आंदोलन में शामिल नहीं

झारखंड में लगभग 90% किसान छोटे स्तर पर खेती करते हैं। किसान नेता महादेव महतो कहते हैं कि यहां किसान खेताें से ही धान की फसल को बेच देते हैं। वे भंडारण नहीं करते। जिले के किसान उतना ही धान उपजाते हैं, जितने में वे सालभर का राशन इकट्ठा कर कुछ अंश बाजार में बेच सकें। यह स्थिति कमोबेश पूरे राज्य में है। यही वजह है कि कृषि कानून के विराेध में जारी आंदाेलन में धनबाद के किसान साथ नहीं खड़े हैं।



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