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Dainik Bhaskar दुनिया में सबसे ज्यादा डेटा भारतीय इस्तेमाल करते हैं, पर इसका लाभ भारत की जगह विदेशी कंपनियों को मिलता है

दुनिया में इंटरनेट डेटा के सबसे बड़े उपभोक्ता भारतीय हैं, लेकिन, हमारे डेटा इस्तेमाल का मुख्य लाभ अमेरिकी, यूरोपियन और चीनी मीडिया प्लेटफॉर्म को ज्यादा मिलता है। एशिया सेंटर रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इसके मुताबिक 2019 में भारतीय हर महीने औसतन 12 जीबी डेटा का उपभोग करते थे।

साल 2025 तक यह आंकड़ा 25 जीबी प्रति माह तक पहुंच जाएगा, लेकिन ये डेटा ज्यादातर विदेश में होस्ट किए गए सर्वर पर खर्च होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारतीयों द्वारा की जाने वाली डेटा खपत का बहुत कम हिस्सा भारतीय उत्पाद या सर्विस में जाता है। इससे जो वैल्यू निकलती है वह अमेरिकी, यूरोपियन और चीनी मीडिया प्लेटफॉर्म के हिस्से जाती है। इतने बड़े इंटरनेट मार्केट के पोटेंशियल को न भुना पाना हमारी विफलता को दर्शाता है।'

इस रिपोर्ट को तैयार करने में फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने भी अहम भूमिका निभाई है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में जिन वेबसाइटों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें सिर्फ 8.8 फीसदी ही इस इलाके में होस्ट किए जाते हैं। यह दुनिया के अन्य हिस्सों के पैटर्न के उलट है। पूर्वी एशिया में यह आंकड़ा 42 फीसदी और अमेरिका-कनाडा में 74.2 फीसदी है।भारत के घरेलू मार्केट ने विदेशी प्लेटफॉर्म द्वारा तैयार किए गए स्थानीय कंटेंट को हाथों हाथ लिया है। इससे यह तो पता चलता है कि यहां क्षमता बहुत है, लेकिन विदेशी प्लेयर्स और स्थानीय कंपनियों के बीच बहुत बड़ा गैप है। इस गैप को भरने की जरूरत है।

रिपोर्ट में ओटीटी के संदर्भ में कहा गया है कि इंडस्ट्री को एकसाथ होकर एक मानक तय करना चाहिए। इसके अलावा उपभोक्ताओं के पास कंटेंट को लेकर तमाम जानकारी और टेक्नोलॉजिकल नियंत्रण होना चाहिए। इन कदमों से बच्चों को भी अनुपयुक्त कंटेंट से बचाया जा सकेगा। कंटेंट के स्तर में सुधार लाने और कंटेंट क्रिएटर्स को अधिक स्वतंत्रता दिए जाने की मांग भी की गई है।

भारत को हार्डवेयर क्षमता में इजाफा करने की जरूरत

रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि भारत अपनी हार्डवेयर क्षमता को बढ़ाए। साथ ही भारत की क्रिएटिव इंडस्ट्री को आउटडेटेड बताया गया है। यह भी कहा गया है कि भारत इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी के वाणिज्यीकरण और मोनेटाइजडेशन में पिछड़ रहा है। भारत में जितनी फिल्में बनती हैं उतनी अमेरिका और चीन दोनों में मिलाकर नहीं बनती हैं। फिर भी ये फिल्में काफी कम रेवेन्यू ला पाती हैं।



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रिपोर्ट में ओटीटी के संदर्भ में कहा गया है कि इंडस्ट्री को एकसाथ होकर एक मानक तय करना चाहिए। (फाइल फोटो)


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