डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय कृषि आयोग की बहुचर्चित रिपोर्ट की शुरुआत में ही महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि ‘भूखों के लिए रोटी ही भगवान है’। इसीलिए रोटी देने वाले किसान को राजनीति, जाति और धर्म से परे, पूरा देश उन्हें अन्नदाता यानी देवता का दर्जा देता है।
कृषि मंत्री तोमर के पत्र में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है कि नए कानूनों को लाने से पहले दो दशकों तक विचार-विमर्श हुआ है। लेकिन तीनों कानूनों को बनाने से पहले कृषि को संविधान के तहत समवर्ती सूची में लाना जरूरी था। इसके लिए स्वामीनाथन ने रिपोर्ट में तगड़ी सिफारिश की थी। केंद्र के बार-बार लिखने पर भी राज्य यदि उन कानूनों को लागू नहीं करें तो राज्य के विषय पर केंद्र को क़ानून बनाने का हक़ नहीं मिल जाता।
इन संवैधानिक पेचीदगियों का पालन नहीं करने पर ही मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में नदियों को जोड़ने की कई लाख करोड़ की सिंचाई योजना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद विफल हो गई थी। इन कानूनों को संवैधानिक दृष्टि से सही मान भी लिया जाए, तो भी इन सात कसौटियों पर खरा नहीं उतरने से, इन्हें निरस्त करना ही बेहतर होगा।
1. किसानों की आत्महत्या के मामले कम करने के लिए स्वामीनाथन रिपोर्ट में भूमि सुधार, सिंचाई, संस्थागत ऋण और तकनीकी उन्नयन से कृषि को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के सुझाव थे। रिपोर्ट में यूरोपियन यूनियन (ईयू) की कॉमन एग्रीकल्चर पॉलिसी जैसी व्यवस्था को भारत में लागू करने का सुझाव देते हुए ‘एक देश एक बाजार’ को साकार करने की बात भी थी। खबरों के अनुसार, दिसंबर 2019 में केंद्रीय कृषि मंत्री ने दावा किया था कि स्वामीनाथन की 201 में से 200 सिफारिशों को सरकार ने लागू कर दिया है। लेकिन कानून और हकीकत में मंत्री के दावों की झलक क्यों नहीं दिखती?
2. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के लिए दलवाई समिति ने कई सिफारिशें की थीं। रिपोर्ट में फसलों और पशुओं की उत्पादकता बढ़ाना, संसाधनों का बेहतर प्रबंधन, फसलों का घनत्व बढ़ाकर उन्हें विविधतापूर्ण बनाना, फसल का सही मूल्य, गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण सुझावों पर ये कानून चुप से हैं।
3. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी 2020 के बजट भाषण में किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के लिए 16 बिंदुओं का एक्शन प्लान बताया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा 2016, 2017 और 2018 में बनाए गए तीन कानूनों को राज्य सरकारें कार्रवाई करें। उसके बाद मई 2020 में कृषि मंत्रालय ने राज्यों से मॉडल एपीएमसी एक्ट 2017 को लागू करने की गुजारिश की थी। संघीय व्यवस्था में राज्यों को मॉडल क़ानून पर सहमत करने की बजाय उन पर नए क़ानून थोपना, संवैधानिक दृष्टि से कैसे सही हो सकता है?
4. राज्यों की परंपरागत मंडियों में पुराने कानूनों के तहत पूरे नियंत्रण के साथ शुल्कों से आमदनी भी होती है। नए क़ानून के तहत बने ट्रेड एरिया पूरी तरह से मुक्त अर्थव्यवस्था से संचालित होंगे। दोहरी प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद-14 के खिलाफ होने के साथ एपीएमसी मंडियों के पतन का कारण बनेगी।
5. बक्सर युद्ध के बाद अंग्रेजों ने दोहरे प्रशासन का सिस्टम लागू किया। उससे बंगाल और भारत के गांवों की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई। एपीएमसी के बाहर कृषि के नए कारोबारी मॉडल में ऑनलाइन कंपनियों और डिजिटल बिचौलियों को कोई शुल्क या टैक्स नहीं देना पड़ेगा। इसके बगैर कृषि में सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग सेंटर के विकास के लिए किसानों और राज्यों के पास पैसा कहां से आएगा?
6. बिचौलियों को ख़त्म करने के नाम पर लाए जा रहे नए कानूनों में एग्री ग्रेटर का नया विधिक प्रावधान है। ओला, ऊबर भी एग्री ग्रेटर हैं। उनकी कानूनी जवाबदेही अब तक आईटी एक्ट में सही तरीके से तय नहीं हुई। वॉलमार्ट ने अमेरिका में लोकल डेयरी मार्केट को तबाह कर दिया। उसी तरह से ऐप और स्टार्टअप के माध्यम से आए ये आसमानी डिजिटल बिचौलिये, आढ़तियों से ज्यादा ही कृषि का सत्यानाश करेंगे।
7. बिग बाज़ार के बियानी को भारत में रिटेल क्रांति का जनक माना जाता है, जो डिजिटल कंपनियों के तूफान में तबाह हो गए। उनकी कंपनी में कब्जे को लेकर रिलायंस और अमेजन के बीच चले मुकदमे का फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महीने में कर दिया, लेकिन किसान और जनता इतनी खुशकिस्मत नही हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में पोंग बांध प्रोजेक्ट से विस्थापित 8000 परिवारों को अब तक वैकल्पिक घर और जमीन नहीं मिली।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो एसडीएम से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने का बूता रखती हैं, लेकिन कांट्रेक्ट फार्मिंग में धराशायी होने पर छोटे किसान और गांवों की कमर कैसे सीधे होगी? जीएसटी लागू करने के लिए सरकार ने संविधान संशोधन किया था। अब कृषि को समवर्ती सूची में लाने के लिए संविधान संशोधन कर नए कानून और जवाबदेह व्यवस्था बनाई जाए, तो आंदोलन ख़त्म होने के साथ किसानों की आमदनी दोगुनी होने का सपना साकार हो सकेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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