कहानी- स्वामी विवेकानंद जब कॉलेज में पढ़ रहे थे, उस समय की बात है। तब वे नरेंद्र के नाम से ही जाने जाते थे। एक दिन कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर नहीं आए तो उनकी क्लास में प्रिंसिपल हैस्टी पढ़ाने पहुंच गए।
प्रिंसिपल हैस्टी प्रकृति के बारे में पढ़ा रहे थे। उन्होंने कहा कि कभी-कभी प्रकृति की सुंदरता देखकर मनुष्य को ट्रांस हो जाता है। ट्रांस शब्द का अर्थ है दिव्य अनुभूति।
विवेकानंद ट्रांस शब्द कई बार सुन चुके थे। वे इस शब्द का अर्थ जानना चाहते थे, ये होता क्या है? कैसे होता है? उन्होंने संकोच किए बिना अपने प्रिंसिपल से पूछा, 'सर, क्या आपको कभी ट्रांस हुआ है?'
प्रिंसिपल ने कहा, 'मैं तो कभी ट्रांस में नहीं गया। लेकिन, मैंने देखा है कि दक्षिणेश्वर में एक साधक हैं रामकृष्ण परमहंस, उनको देखकर लगता है कि ट्रांस क्या है?'
इस एक जवाब ने नरेंद्र के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव ला दिया। उन्होंने कई लोगों से दैवीय अनुभूति के बारे में पूछा था। रविंद्रनाथ ठाकुर के पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर से भी ट्रांस के बारे में पूछा था। लेकिन, कहीं से भी उन्हें सही उत्तर नहीं मिला था।
प्रिंसिपल से सुनकर एक दिन नरेंद्र, रामकृष्ण परमहंस के आश्रम में पहुंच गए। नरेंद्र ने परमहंसजी से वही प्रश्न पूछा, 'ट्रांस क्या होता है? क्या आपको कभी ट्रांस हुआ है? मुझे कैसे मिल सकता है? क्या आपने कभी भगवान को देखा है?
परमहंसजी ने उत्तर दिया, 'हां, मैंने भगवान को देखा है।'
नरेंद्र ने पूछा, 'कब देखा?'
परमहंसजी बोले, 'अभी देखा, ठीक इसी तरह, जिस तरह मैं तुम्हें देख रहा हूं। मैं तुम्हारे अंदर भगवान को देख रहा हूं। तुम्हें देखकर मुझे ट्रांस हो गया है।'
इस जवाब ने और परमहंसजी के शरीर से निकलने वाली तरंगों ने नरेंद्र के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। उन्हें अपने सवालों का जवाब मिल चुका था।
सीख- जीवन में जब कोई समस्या हो, कोई प्रश्न या शंका हो तो समझदार व्यक्ति मिलने पर उनसे अपनी शंकाओं का समाधान पूछ लेना चाहिए। सवाल पूछने में संकोच न करें। समस्या का समाधान सही समय पर मिल जाए तो जीवन में बहुत बड़ी उपलब्धि मिल जाती है।
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