आज विंटर सॉल्सटिस है। यानी साल का सबसे छोटा दिन। पिछले साल विंटर सॉल्सटिस 22 दिसंबर को पड़ा था। लेकिन, इस बार यह 21 दिसंबर को है। इससे पहले 2017 में भी विंटर सॉल्सटिस 21 दिसंबर को ही पड़ा था।
आखिर ये दिन छोटे बड़े क्यों होते हैं? क्या 21 और 22 दिसंबर के अलावा भी किसी दिन साल का सबसे छोटा दिन पड़ सकता है? सॉल्सटिस का मतलब क्या होता है और यह कितनी तरह का होता है? क्या इसका मौसम पर भी कोई असर पड़ता है? आइये जानते हैं...
दिन छोटे बड़े क्यों होते हैं?
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इसका कारण है धरती का झुका हुआ होना। दरअसल धरती ही नहीं बल्कि, सोलर सिस्टम का हर ग्रह अलग-अलग एंगल पर झुका हुआ है। हमारी धरती भी अपने एक्सिस पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है। धरती के अपने एक्सिस पर झुके होने, उसके अपनी धुरी पर चक्कर लगाने जैसे फैक्टर्स के कारण किसी एक जगह पड़ने वाली सूर्य की किरणों का समय साल के अलग-अलग दिन अलग होता है।
तो क्या आज पूरी दुनिया में साल का सबसे छोटा दिन होगा?
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ऐसा नहीं है। नॉर्थ हेमीस्फेयर (उत्तरी गोलार्ध) वाले देशों में आज साल का सबसे छोटा दिन है। वहीं, साउथ हेमीस्फेयर (दक्षिणी गोलार्ध) वाले देशों में आज साल का सबसे बड़ा दिन है। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे देशों में आज साल का सबसे बड़ा दिन है।
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.नॉर्थ हेमीस्फेयर साल के छह महीने सूरज की ओर झुका होता है। इससे इस हेमीस्फेयर में डायरेक्ट सनलाइट आती है। इस दौरान नॉर्थ हेमीस्फेयर के इलाकों में गर्मी का मौसम होता है। बाकी छह महीने ये इलाका सूरज से दूर चला जाता है और दिन छोटे होने लगते हैं।
क्या साल के सबसे छोटे दिन की लंबाई और टाइमिंग एक जैसी होगी?
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अलग-अलग शहरों में आज साल का सबसे छोटा दिन जरूर है, लेकिन इसकी लंबाई अलग-अलग होगी। जैसे, दिल्ली में आज सुबह 7:10 बजे सूरज उगेगा और शाम 5:29 पर सूर्यास्त हो जाएगा। यानी, पूरे दिन की लंबाई 10 घंटे 19 मिनट। वहीं, भोपाल में सुबह 6:58 बजे सूरज उगेगा और शाम को 5:40 पर सूर्यास्त होगा। यानी, पूरे दिन की लंबाई 10 घंटे 42 मिनट की होगी।
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अब एक दिन पहले यानी 20 दिसंबर की बात करें तो दिल्ली में सुबह 7:09 पर सूरज उगा और शाम 5:29 पर सूर्यास्त हुआ। यानी दिन की कुल लंबाई आज से एक मिनट ज्यादा 10 घंटे 20 मिनट थी। वहीं, कल यानी 22 दिसंबर को सुबह 7:10 बजे सूरज उगेगा और शाम 5:30 पर सूर्यास्त होगा। यानी कल भी दिन की लंबाई आज से एक मिनट ज्यादा होगी।
विंटर सॉल्सटिस की तारीख क्यों बदलती है? क्या महीना भी बदलता है?
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धरती का एक साल 365.25 दिन में पूरा होता है। यानी हर साल जिस वक्त सूरज की किरण सबसे कम समय के लिए धरती पर आती हैं, वो समय करीब छह घंटे शिफ्ट हो जाता है। इसी वजह से हर चाल साल में लीप इयर होता है। जो इस समय को एडजस्ट करता है। यानी, पिछले साल सूरज 22 दिसंबर को धरती पर सबसे कम समय के लिए रहा था, इस साल यह दिन 21 दिसंबर को ही हो गया।
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धरती के एक साल और लीप ईयर से एडजस्टमेंट के कारण विंटर सॉल्सटिस 20, 21, 22 या 23 दिसंबर में से किसी एक दिन पड़ता है। हालांकि, ज्यादातर यह 21 और 22 दिसंबर को ही पड़ता है। कहने का मतलब विंटर सॉल्सटिस की तारीख तो बदलती है, लेकिन महीना कभी नहीं बदलता है।
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इसी तरह समर सॉल्सटिस यानी साल का सबसे लंबा दिन 20 से 23 जून के बीच पड़ता है। वहीं, 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन और रात का समय बराबर होता है। इसे इक्वेटर कहते हैं। यानी, इस दिन सूरज धरती की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर होता है।
क्या इसका मौसम पर भी कोई असर पड़ता है?
विंटर सॉल्सटिस से सर्दियां बढ़नी शुरू हो जाती हैं। आज से नॉर्थ हेमीस्फेयर में सर्दियों की शुरुआत और साउथ हेमीस्फेयर में गर्मियों की शुरुआत मानी जाती है।
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